मालेगांव के बंडू काका बच्छाव ने राष्ट्रीय एकता की उदाहरण स्थापित कर नफरत भरे माहौल को शर्मसार किया !!!
बारा बलुतेदार मित्र मंडल की ओर से 20 इमाम और मुअज्जिन को मिलेगा उमरा पैकेज !!!!!
विशेष रिपोर्ट: खयाल असर (मालेगांव)
आज के नफरत भरे माहौल में जब मानवता सिसक रही है या मानवता दुर्लभ हो गई है, तब कोई है जो दो धर्मों के बीच ऐसी खाई को बढ़ने से रोक सकता है और दुश्मनी भरे माहौल में प्यार की दुकान खोल सकता है हिंदू और मुसलमानों के बीच कोई विवाद है और और ना ही उनके बीच कोई अंतर है। ऐसे विरोधाभासी माहौल में, बारा बलोतेदार मित्र मंडल के उत्साही बंडू काका बच्छाव ने घोषणा की है कि वह अपने निजी खर्च से न केवल 20 से अधिक इमाम और मुअज्जिनों के लिए उमरा का आयोजन करेंगे, बल्कि, वे उनके प्रस्थान की प्रक्रिया को इस अद्भुत तरीके से व्यवस्थित करते हैं के नफरत भरा माहौल भी शर्मसार होकर रह जाता है।
यह एक या दो साल की बात नहीं है, यह सदियों पुरानी रित है जिसे हमारे पूर्वजों ने अपने प्राणों की आहुति देकर इस प्यारे देश को बनाया है। आज राजनीति के बाजार में नफरत के सिवा कुछ नजर नहीं आता। नफरत की दुकानों पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ रही है, जबकि प्यार की दुकानों पर ताले नजर आ रहे हैं। दोनों धर्मों के बीच इतनी कुरूपता और नफरत फैला दी गई है कि दोनों एक-दूसरे के खून के प्यासे नजर आते हैं। नफरत के इस बाजार में प्यार की दुकान खोलने की कोशिश करने वाला कोई नहीं है, लेकिन भारत के मानचित्र पर एक बिंदु की तरह मालेगांव शहर से बंडू काका बच्छाव की आवाज यू उभरती है, “मोहब्बत जिंदा रहती है, मोहब्बत मर नहीं सकती” नफरत की इन आंधियों में मोहब्बत की मोमबत्तियाँ जलाई जा सकती हैं, उन्हें केवल जलाया जा सकता है, बल्कि लालटेन बनकर इन जलती मोमबत्तियों की रक्षा करने का कर्तव्य भी निभाया जा सकता है। यदि इस भावना को दीर्घकाल तक जारी रखा जाये, यदि ईमानदारी से किया जाये तो आश्चर्य नहीं कि यह घृणित वातावरण गुलजार में बदल जाये जहाँ शांति का दूर तक दर्शन होता है। बंडू काका बच्छाव द्वारा उमरा कर्तव्यों को पूरा करने के लिए 20 से अधिक हफ़ाज़ और मुअज़्ज़िन को भेजने का उल्लेखनीय कार्य इतना छोटा नहीं है कि इसे छोड़ दिया जाए या भुला दिया जाए। आज हम जिस वातावरण में सांस ले रहे हैं वह विज्ञापन युग है। अगर कोई किसी को दो रोटी भी बांट देता है तो वे उसे ऐसे प्रचारित करने में लग जाते हैं जैसे उन्होंने कोई बड़ा कारनामा कर दिया हो। बंडू काका बच्छाव की अंतहीन सेवाओं की यह पहली घटना नहीं है, बल्कि जहां-जहां आकस्मिक दुर्घटनाएं हुई हैं, वहां-वहां बंडू काका बच्छाव ने अपनी क्षमता से बढ़कर ऐसे उत्कृष्ट कार्य किए हैं कि एक रचना ही पीछे छूट गई है। बंडू काका बच्छाव की उपलब्धियों या इस्लाम धर्म के दर्द को ठीक करने की इच्छा को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। यह एक या दो पल की बात नहीं है, यह मुस्लिम धर्म के लिए एक ऐसा तज़ियाना है जो सदियों तक याद रखा जाएगा। आज की विषम परिस्थिति में यह बहुत जरूरी है कि नफरत फैलाने वालों के बीच रहकर बिना भेदभाव के फूल बांटने वाले इस महान व्यक्तित्व की ऐसी सराहना की जाए कि सदियों तक उनका नाम सीने पर बना रहे क्योंकि आज इसकी सख्त जरूरत है ऐसे व्यक्तित्वों के लिए जब…
“आग ही आग है बिखरी हुई चारों जानीब
रस्ता फूलों का कहीं हो तो दिखाना या रब।
यही वह रास्ता है जो राष्ट्रीय एकता की ओर ले जाता है जब चारों ओर नफरत की आग हो और कोई रास्ता फूलों से भरा न हो, तब शांति के फूल ऐसे खिलाए जाएं कि यह दुनिया या हमारा भारत फिर से एक हो जाए। राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की ऐसी मिसाल बनें जिसका अनुसरण करने के लिए पूरी दुनिया मजबूर हो। देश का यह कहना सही था कि संत कबीर एक मराठा व्यक्ति हैं और मुस्लिम समुदाय इस बात पर अड़ा हुआ था कि कबीर एक मुस्लिम व्यक्ति थे, इसलिए हम उन्हें दफना देंगे। फिर मामला इसी एक बात पर ठंडा पड़ गया कि उनसे क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए। ऐसे में जब उनसे पूछने के लिए कफन हटाया गया तो गुलाब के अलावा कुछ नजर नहीं आया. आज अगर बंडू काका बच्छाव हमारे बीच मौजूद हैं तो वे एक ऐसे संत के रूप में अपनी आभा फैला रहे हैं जो स्वयं कबीर के दोहे की तरह अपने वैभव से युग को आलोकित कर रहे हैं। बंडू काका बच्छाव की महान सेवाओं के लिए संत कबीर का एक दोहा इतना सटीक है कि…
कबीरा खड़ा बज़ार में, मांगे सबकी ख़ैर
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर
हिंदू और मुस्लिम धर्मों को एक साथ लाने वाला ये व्यक्ति एक ऐसी उदाहरण है जिसकी मिसाल मालेगांव के अलावा और कहीं देखने को नहीं मिलती। बंडू काका बच्छाव ने ऐसी मिसाल कायम करने से पहले संत कबीर को जरूर पढ़ा होगा। अहिंसा के प्रणेता महात्मा गांधी की जीवनी का अध्ययन किया होगा। शिवाजी महाराज और औरंगजेब या अकबर आजम के जीवन की तुलना की होगी, तभी उनके दिलो-दिमाग से हिंदू-मुसलमानों का भेद खत्म हुआ होगा और केवल मानवता की रक्षा और अस्तित्व बचा होगा।
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