प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर तेरहवां (13) राष्ट्रीय पाक्षिक व्याख्यान संपन्न


पुणे न्यूज एक्सप्रेस :

दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयोजन में प्रख्यात हिंदी साहित्यकार ‘प्रोफेसर (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’ का सृजन-मूल्यांकन’ विषय पर आयोजित पाक्षिक व्याख्यानमाला का तेरहवां (13 ) ऑनलाइन व्याख्यान उनके चर्चित उपन्यास ‘टुकड़ा टुकड़ा संघर्ष’ विषय पर केंद्रित रहा ।

समारोह के अध्यक्ष के रूप में बिरसा मुंडा जनजातीय विश्वविद्यालय, राजपिपला, गुजरात रहे के कुलपति, प्रोफ़ेसर मधुकर भाई एस पडवी रहे, जे जे टी विश्वविद्यालय, मुंबई (महाराष्ट्र) के हिंदी विभाग के प्रोफेसर एवं शोध निर्देशक प्रो. दयानंद तिवारी विशिष्ट अतिथि रहे, जबकि पुणे (महाराष्ट्र) के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं समीक्षक प्रो.ओम प्रकाश शर्मा, आमंत्रित विद्वान के रूप में रहे ।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर पडवी ने कहा विभिन्न विधाओं में सात दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखने वाले साहित्य अकादमी बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित, उत्तराखंड में जन्में उपन्यासकार प्रोफेसर दिनेश चमोला ‘शैलेश’ किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनकी ख्याति अपने उर्वरा लेखन के लिए देश से लेकर विदेश तक है । उत्तराखंड के रचनाकार के सृजन मूल्यांकन पर महात्मा गांधी द्वारा स्थापित दक्षिण की बहुचर्चित संस्था, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई द्वारा क्रमशः तेरह समारोहों को आयोजित किया जाना अत्यंत महत्त्व का विषय है । तब सच बोला हिमालय की विरल तपस्वी हैं ।’

आमंत्रित विद्वान के रूप में पुणे के प्रो.ओम प्रकाश शर्मा ने विवेच्य उपन्यास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रोफेसर चमोला के इस उपन्यास में मनोविज्ञान,अस्तित्ववाद, मानवतावाद, गहन अध्यात्म-संस्कृति एवं दार्शनिक कथोप-कथन अत्यंत प्रभावी संयोग बन पड़ा है । जिस प्रकार एक दक्ष चिकित्सक धन नारियों और धन्य के माध्यम से रुख का निदान कर लेता है उसी प्रकार दिखती पारखी दृष्टि भी सामाजिक विषमताओं व विपरीतताओं को अपने स्वस्थ चिंतन से परिमार्जित करती रहती हैं । इसमें उपन्यासकार ने कहीं व्यास शैली, चित्रात्मक शैली, वर्णनात्मक शैली और लाक्षणिक शैली के माध्यम से चालीस वर्ष पूर्व के जन जीवन को स्वस्थ कथोप-कथन के माध्यम से अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रित करने का सफल प्रयास किया है । मानवीय मूल्यों और सफल मनोविज्ञान का यह बेहतरीन उपन्यास है ।

विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए मुंबई के प्रोफेसर दयानंद तिवारी ने कहा कि प्रोफ़ेसर चमोला के उपन्यास में गरीबी, संघर्ष और स्वाभिमान के त्रिकोणीय रचना ने मूल्यों एवं संस्कारों को इतने प्रभावी ढंग से संविरचित किया है कि उपन्यास अत्यंत प्रभावी और युगबोध से स्वत: ही संपन्न हो गया है । शिल्प,शैली, कथोप-कथन, देश काल आदि दृष्टि से चरित्र निर्माण व राष्ट्र निर्माण की मूलभूत भावना का मर्मस्पर्शी चित्रण करता है । उपन्यास कार ने अपनी अद्भुत लेखन-क्षमता से नायक राजू की मां का अत्यंत प्रभावी चित्रांकन किया है । यह आज से विगत 50 वर्षों की युवाओं की मनोदशा का मार्मिक चित्रण नहीं है, बल्कि आज के 80 प्रतिशत ग्रामीण समाज के युवाओं की मनोदशा का बखूबी चित्रण करता हुआ उपन्यास है । असली लेखन वह है जब पाठक को लेखक के लेखन को पढ़कर क्रोधित हो जाए, यह बखूबी इस उपन्यास के प्रारंभ से अंत तक देखा जा सकता है जिसके लिए प्रोफेसर चमोला बधाई के पात्र हैं । यह उपन्यास निश्चय ही एक सफल ग्रामीण जन जीवन के संघर्ष, गरीबी व स्वाभिमान संघर्ष और स्वाध्याय की त्रिवेणी को पुष्ट करता है ।

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प्रो. मंजुनाथ अम्बिग, शोधार्थी भावना गौड़, विनीता सेतुमाधवन ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया । यह उनकी अगाध काव्य साधना का प्रतिफल है। ध्यातव्य है कि 14 जनवरी, 1964 को उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद के ग्राम कौशलपुर में स्व.पं. चिंतामणि चामोला ज्योतिषी एवं श्रीमती माहेश्वरी देवी के घर मेँ जन्मे प्रो. चमोला ने शिक्षा में प्राप्त कीर्तिमानों यथा एम.ए. अंग्रेजी, प्रभाकर; एम. ए. हिंदी (स्वर्ण पदक प्राप्त); पीएच-डी. तथा डी.लिट्. के साथ-साथ साहित्य के क्षेत्र में भी राष्ट्रव्यापी पहचान निर्मित की है। अभी तक प्रो. चमोला ने उपन्यास, कहानी, दोहा, कविता, एकांकी, बाल साहित्य, समीक्षा, शब्दकोश, अनुवाद, व्यंग्य, खंडकाव्य, व्यक्तित्व विकास, लघुकथा, साक्षात्कार, स्तंभ लेखन के साथ-साथ एवं साहित्य की विविध विधाओं में लेखन किया है ।

पिछले इकतालिस (41) वर्षों से देश की अनेकानेक पत्र-पत्रिकाओं के लिए अनवरत लिखने वाले साहित्यकार प्रो.चमोला राष्ट्रीय स्तर पर साठ से अधिक सम्मान व पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं व तिरासी (83) मौलिक पुस्तकों के लेखक के साथ-साथ हिंदी जगत में अपने बहु-आयामी लेखन व हिंदी सेवा के लिए सुविख्यात हैं । आपकी चर्चित पुस्तकों में ‘यादों के खंडहर, ‘टुकडा-टुकड़ा संघर्ष, ‘प्रतिनिधि बाल कहानियां, ‘श्रेष्ठ बाल कहानियां, ‘दादी की कहानियां¸ नानी की कहानियां, माटी का कर्ज, ‘स्मृतियों का पहाड़, ’21श्रेष्ठ कहानियां‘ ‘क्षितिज के उस पार, ‘कि भोर हो गई, ‘कान्हा की बांसुरी, ’मिस्टर एम॰ डैनी एवं अन्य कहानियाँ,‘एक था रॉबिन, ‘पर्यावरण बचाओ, ‘नन्हे प्रकाशदीप’, ‘एक सौ एक बालगीत, ’मेरी इक्यावन बाल कहानियाँ, ‘बौगलु माटु त….,‘विदाई, ‘अनुवाद और अनुप्रयोग, ‘प्रयोजनमूलक प्रशासनिक हिंदी, ‘झूठ से लूट’, ‘गायें गीत ज्ञान विज्ञान के’ ‘मेरी 51 विज्ञान कविताएँ’ तथा ‘व्यावहारिक राजभाषा शब्दकोश’ आदि प्रमुख हैं। हाल ही में आपकी अनेक पुस्तकें- ‘सृजन के बहाने: सुदर्शन वशिष्ठ’; ’21 श्रेष्ठ कहानियां’ (कहानियां); ‘बुलंद हौसले’ (उपन्यास); ‘पापा ! जब मैं बड़ा बनूंगा’; ‘मेरी दादी बड़ी कमाल’ (बाल कविता संग्रह) तथा ‘मिट्टी का संसार’ (आध्यात्मिक लघु कथाएं) आदि प्रकाशित हुई हैं। प्रो. चमोला ने 22 वर्षों तक चर्चित हिंदी पत्रिका “विकल्प” का भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून से संपादन किया है तथा दो बार इस पत्रिका को भारत के राष्ट्रपति के हाथों प्रथम व द्वितीय पुरस्कार दिलाया है । आप देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों, आयोगों व संस्थानों की शोध समितियों ; प्रश्नपत्र निर्माण व पुरस्कार मूल्यांकन समितियों के सम्मानित सदस्य/विशेषज्ञ हैं।

प्रो. (डॉ.) दिनेश चमोला ‘शैलेश’, डी.लिट्.

आचार्य एवं पूर्व डीन-विभागाध्यक्ष,

भाषा एवं आधुनिक ज्ञान विज्ञान

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय,23, गढ़ विहार, फेज -1,

मोहकमपुर, देहरादून -248005

Email:-

chamoladc@yahoo.com

09411173339(Mob.)

 

 


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