“उर्दू को हम एक रोज़ मिटा देंगे जहाँ से ये बात भी कम्बख्त ने उर्दू में कही थी”.
अज़हर मिर्जा
azhar.mirza@mid-day.com
पुणे न्यूज एक्सप्रेस :
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले दिनों विधानसभा में विपक्ष पर तनक़ीद की आड में उर्दू के खिलाफ हरजा सराई की, योगी की इस तंग नजरी के खिलाफ सोशल मिडीया युगर्स जम कर बरसे. सुरेंद्र पाठक युजर्स ने फेसबुक पर एक पोस्ट शेअर की, इस का एक हिस्सा मुलाहिजा फरमाएं “उर्दू की खोज भारत में हुई, उर्दू भारत का विरसा है, उर्दू किसी मजहब की जागिर नहीं, उर्दू जबान है, राब्ते का जरिया है, उर्दू बकर ईद का गोश्त नहीं, ईद की सेवईया नहीं ये भारत की दरियाफत है. हमारा रामप्रसाद खुद के आगे बिस्मिल लिखता था. हमारा भगत सिंग उर्दू में शायरी करता था, हमारा रघुपती सहाए ,फिराक’ हो जाता था, हमारे पटेल को अच्छी उर्दू आती थी और नेहरू भी अच्छी उर्दू बोलते थे. हर मुहब्बूत करने वाला इंसान उर्दू बोलता है, हर गित गाने वाला दिल उर्दू बोलता है, हर शेर व शायरी करने वाल वाला शख्स उर्दू बोलता है. जिन्हें लगता है के उर्दू के बिना भारत है, तो वो सिर्फ एक घंटा बगैर उर्दू बोले गुजार कर दिखा दें…. है किसी की अवकात ? देखो अवकात भी उर्दू है कहाँ कहाँ से मिटाओगे उर्दू को? पहले अपनी जबान से मिटा कर दिखाओ तो माने-देखा ज़बान भी उर्दू है. उर्दू के खिलाफ तुम्हारी नफरत भी उर्दू है- मुहब्बत भी उर्दू है और इश्क भी उर्दू है”. इस पोस्ट में इस तरह के बिसियों अल्फ़ाज़ का हवाला दिया गया है.
डॉ राकेश पाठक ने इक्स पर लिखा के ” सुनिए योगीजी, उर्दू इसी मुल्क की जबान है, यहीं पैदा हुई है, इसे कठमुल्ला ज़बान बताकर बेहुरमती ना कीजिए ,अमीर खुसरो, मीर, गालिब, इकबाल से लेकर प्रेमचंद तक उर्दू की शान है”.
आप के नेता संजय सिंह ने एक्स पोस्ट में लिखा के” योगीजी ने अपने 4 मिनट 28 सेकेंड के उर्दू के खिलाफ दिए गए बयान में 9 अल्फ़ाज़ उर्दू के इस्तेमाल किए किए तबके, पायदान, अगर, बात, बच्चों, आदी, सरकार, अंदर, दुनिया”
हिंदी के सिनीयर पयकार अरमिलेश ने फेसबुक पोस्ट में लिखा के “उर्दू एक खूबसूरत ज़बान है, मेरे कई दोस्त है ,जिन की उर्दू बहोत अच्छी है, इन में कुछ हिंदी में लिखते हैं उन की हिंदी भी पढकर तबीयत खुश हो जाती है, काश मैं ने भी ज़माना तालिबे इल्मी में उर्दू पढ़ लिखली होती, मेरी हिंदी मज़िद बेहतर हो जाती, बहोत अच्छा लगता है जब कभी उर्दू के जाने पहचाने शब्दों से सभी हिंदी पढता हूँ, उर्दू और हिंदी दो अलग लिपी अलग भाषाए हैं. पर दोनों को पूरी तरह जुदा नहीं किया जा सकता और ना ही लडाया जा सकता है.”
मशहूर पब्लिशर ‘राजकमल प्रकाशन’ ने एक्स पर ” साथ पढे साथ जुड़े, के हॅशटॅग के
साथ शमशेर बहादूर सिंह के के ये अशआर शेयर किए “वो अपनों की बातें ,
वो अपनों की खू-बू
हमारी ही हिंदी हमारी ही उर्दू
ये कोयल व बुलबुल के मीठे तराने
हमारे सिवा इस का रस कौन जाने ”
फ्रीलांस पत्रकार रोहिनी सिंह ने योगी के बयान पर तनज़न लिखा के “उर्दू तो लखनवी तहज़ीब की जबान है, न है, हिंदूस्तान की अपनी जबान है. हां आप की जबान ना ही योगी की है, ना ही एक मुख्यमंत्री की”
हिस्ट्री सेल एक्स अकाउंट से ये पैगाम जारी किया गया है के ” उर्दू किसी धर्म की नहीं बल्के हिंदूस्तानी तहजीब की जबान है, इसे हिंदू, मुसलमान, सिख, सभी ने अपनाया और सींचा- गंगा जमनी तहजीब की पहचान है उर्दू. नेहा सिंह राठोड ने मशहूर एजुकेटर विकास दिव्या किर्ती के उर्दू के हक में दिए गए एक बयान
की क्लिप शेयर करते हुए लिखा के
“उर्दू को हम एक रोज़ मिटा देंगे जहाँ से
ये बात भी कम्बख्त ने उर्दू में कही थी”.
मनोज कुमार झा ने हसन काज़मी को ये शेर शेअर किया है
“सब मेरे चाहने वाले है मेरा कोई नही
मैं भी इस मुल्क में उर्दू की तरह रहता हूं”
आशुतोष मिश्रा ने इस शेर पर अपना मतमए नज़र बयान किया
“बात करने का हंसी तौर तरीका सीखा
हमने उर्दू के बहाने से सलीका सीखा”
सोशल टाईम्स के हैंडल से पूराने ख़ुतूत की तसवीर के साथ लिखा गया के ” सावरकर अयाम असीरी के में उर्दू में ग़ज़ल लिखा करते थे, योगी आदित्यनाथ बताए के क्या सावरकर भी कठमुल्ला थे?” सिनीयर पत्रकार ओम थानवी ने लिखा के “उर्दू को सिर्फ मुसलमानों की ज़बान समझने वाले बताए के हिंदी को हिंदी नाम फारसी से और उर्दू और हिंदी के सैंकड़ों अलफाज फ़ारसी, अरबी- तुर्की- पश्तो से क्यों है? बंगलादेश की भाषा उर्दू क्यों नहीं है? इस साल का उर्दू साहित्य अकादमी एवॉर्ड पाने वाले शीन.फाफ (शीव कृष्ण) निज़ाम क्या मुसलमान है?
मल्टी मीडिया जर्नलिस्ट साकिब ने एक्स पर उर्दू पर थ्रेड शेअर किया जिस में वो लिखते है के ” उर्दू जबान और हिंदूस्तान: उर्दू शायर मौलाना हसरत मोहानी ने उस दौर में अंग्रेजो के खिलाफ लडाई शुरू की जब गांधी जी मैदान में नहीं आये थे ,आज आहिनी ओहदों पर बैठे लोग उर्दू के खिलाफ तरह तरह की बाते कर रहे हैं. आजादी की लडाई के दौर में उर्दू अदब के कलमकारो ने लोगों को बेदार करने का काम किया. आशिकी से मुअत्तर उर्दू अदब 1857 से 1947 तक ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आवाज बुलंद करने का जरिया बना. उर्दू शायर अलताफ हुसैन हाली, शिबली नुमानी, ब्रिज नारायण चिकबस्त, हसरत मोहानी, ज़फ़र अली ख़ान,जोश मलीह आबादी, अल्लामा इकबाल, दुर्गा सहाय, मोहम्मद अली जौहर और उनके भाई शौकत अली , सरवर जहान आबादी, बिस्मिल अजीम आबादी, तिरलोकचंद महरुम जैसे दरजनो शायरो के साथ उर्दू ने मुनज़्ज़म हो कर जंगे आजादी में अहम किरदार निभाया…. ” ग़र्ज़के उर्दू के आशिफ़ता सरो और चाहने वालों की जानिब से इस तरह के तास्सुरात व रदद व अमल एक्स , फ़ेसबुक पर जा बजा नज़र आ रहे हैं. वही इंस्टाग्राम और यूट्यूब शॉर्टस पर उर्दू अश्आर के विडियो भी खूब शेअर किए जा रहे है इन्ही में शादाब बेधडक के ये अशआर रिलस और शार्टस की शक्ल में खुब पसंद किए जा रहे है। उन्हों ने उर्दू के मुताल्लिक अपने मुनफरद अंदाज़ में कई मुशायरा में ये कहा है के
“हिंद की आन बान है उर्दू रौनक दो जहान है उर्दू
क्या कहा उर्दू गैर मूलकी है तेरी मां की ज़बान है उर्दू ”
जाते जाते संपूर्ण सिंग कालरा जिन्हें उर्दू ने गुलज़ार कर दिया की मशहूर नज़्म उर्दू जुबां के ये अशआर पढते जाएं
“बड़ी शाईस्ता लहजे में उर्दू सुन कर
क्या नहीं लगता के एक तहज़ीब की आवाज़ है उर्दू
बशूक्रिया: दैनिक इन्कलाब,मुंबई
इतवार 23 फ़रवरी 2025
अनुवाद : मोहम्मद जावेद मौला, पुणे

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