खिराज-ए-अकीदत:
खिराज-ए-अकीदत:
मरहूम महमूद हाशिम मोलेदीना
सैयद शाह परवीज निदा
पुर्व प्रिंसिपल, मोलेदीना हाई स्कूल, पुणे
बिछड़ा कुछ इस अदा से कि रुत ही बदल गई,
वो एक शख्स सारे शहर को वीरान कर गया।
पुणे न्यूज एक्सप्रेस : 
मोहम्मद जावेद मौला :
पूरा मोलेदीना इदारा इस वक़्त गहरे ग़म में है क्योंकि हमने अपने प्यारे और मोहतरम रहनुमा श्री महमूद हाशिम मोलेदीना सर को खो दिया है। उनका जाना हमारे लिए नाकाबिले बयान नुक़सान है, लेकिन उनकी अज़ीम ख़िदमतें और रोशन यादें हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगी।
मैं अपने जज़्बात को बयान करने के लिए अल्फ़ाज़ नहीं ढूंढ पा रही हूँ, क्योंकि कोई भी अल्फ़ाज़ इस दर्द और ग़म को पूरी तरह बयान नहीं कर सकते जो हम सब महसूस कर रहे हैं। उनकी शानदार क़ियादत ने न सिर्फ़ इदारे को सही राह दी बल्कि इदारे के सब ही मेंबर्स को आगे बढ़ने और कामयाब होने के लिए रहनुमाई की। उन्होंने इदारे को दूरअंदेशी, वक़ार और हमदर्दी के साथ संभाला और बेशुमार तलबा व तालिबात और स्टाफ़ के करियर को संवारा, जिनमें मेरा करियर भी शामिल है। उनकी क़ाबिले-रश्क शख़्सियत, मुसलसल हौसला-अफ़ज़ाई और रहनुमाई ने इस इदारे को हमारे लिए दूसरा घर बना दिया।
आज भले ही वो हमारे दरमियान मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें, उनके मुश्फ़िकाना अल्फ़ाज़ और उनका हौसला हमेशा हमारे दिलों में ज़िंदा रहेंगे।
“वो आसमान था मगर सर झुका के चलता था।”
हमारे इदारे की तारीख़ 1935 से शुरू होती है, जब हाशिम मोलेदीना सर, जो कि श्री महमूद मोलेदीना साहब के वालिद थे, उन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत से इजाज़त लेकर तालीम के मैदान में एक इस्लाही तहरीक का आग़ाज़ किया। उनका मक़सद था कि ग़रीब और नादार बच्चों को बेहतरीन तालीम दी जाए, ताकि वो कामयाब होकर अपने और अपनी क़ौम का मुस्तक़बिल रोशन कर सकें।
इसी मक़सद के तहत उन्होंने कैंप, पुणे में अब्दुल वाहिद उर्दू और इंग्लिश मीडियम प्राइमरी स्कूल क़ायम किया और शंकरशेठ रोड पर हाई स्कूल का आग़ाज़ किया जिसमें टेक्निकल सेक्शन भी शामिल था। बाद में एक जूनियर कॉलेज भी शुरू किया गया जहाँ टेक्निकल तालीम उर्दू और इंग्लिश दोनों ज़बानों में दी जाने लगी। यह इदारा पुणे के सबसे पुराने और अनोखे इदारों में से एक है, जिसका मक़सद हमेशा से माली फ़ायदा नहीं बल्कि बच्चों की तरक़्क़ी रहा है।
इस इदारे के दरवाज़े सिर्फ़ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि हर मज़हब और हर क़ौम के बच्चों के लिए खुले रहे, ताकि वो कम खर्च में बेहतरीन तालीम हासिल कर सकें। इन्हीं कोशिशों की बदौलत इस इदारे ने वक़्त के साथ बेहतरीन इंजीनियर, डॉक्टर और अलग-अलग शोबों के माहिर तैयार किए, जो आज पूरी दुनिया में अपनी ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं।
वक़्त के साथ श्री महमूद हाशिम मोलेदीना ने इदारे की क़ियादत संभाली और बानी के ख़्वाब को और आगे बढ़ाया। उनकी रहनुमाई में इदारा जदीद तालीमी तक़ाज़ों से हम-आहंग होता गया, लेकिन अपनी असल बुनियाद और मक़सद से जुड़ा रहा। कुछ वक़्त पहले उन्होंने चेयरमैनशिप से इस्तीफ़ा देकर इदारे की ज़िम्मेदारी रियाज़ उमर सर को सौंप दी, लेकिन इसके बावजूद वो इदारे से गहरा लगाव रखते थे और हर मौके पर रहनुमाई और मशविरा देते रहते थे। उनकी शफ़क़त और रहनुमाई की वजह से पूरा स्टाफ़ उनसे बहुत मोहब्बत और अकीदत रखता था।
उनके इंतेक़ाल से इदारा एक अज़ीम सरपरस्त से महरूम हो गया है। आज हम न सिर्फ़ उनके जाने का ग़म मना रहे हैं बल्कि उनकी ज़िंदगी की ख़ूबसूरत यादों का जश्न भी मना रहे हैं, जो उन्होंने दूसरों के लिए वक़्फ़ की। उनकी लगाई हुई तालीम की यह पौध आज भी हरी-भरी है और आने वाली नस्लों को कामयाबी के रास्ते पर गामज़न कर रही है।
हमारी ज़िम्मेदारी है कि उनके ख़्वाब को ज़िंदा रखें और इस इदारे को और तरक़्क़ी की बुलंदियों पर ले जाएँ, ताकि उनकी रूह को सुकून और खुशी मिले।
अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उनकी अहलिया श्रीमती राबिया मोलेदीना को सब्र-ए-जमील अता करे और श्री महमूद हाशिम मोलेदीना साहब को जन्नतुल फिरदौस में आला मक़ाम अता करे और उनकी क़ब्र को नूर से भर दे।
आमीन।

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